म्हारी कहानी-म्हारी जुबानी
मैं, गांव जोबा के श्री मांगीलाल देवासी के घर जन्मी तीन भाई बहनों में सबसे छोटी 15 साल की संगीता हॅूं। मैं, जब 3 साल की थी तभी मेरी मां हमें छोड़कर कहीं और चली गई। जिसका आज तक कोई पता नहीं चला। हालांकि पिताजी ने गुमशुदगी की पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवायी थी। लेकिन पुलिस उल्टा पिताजी पर ही अंगुली उठाती रही और उन्हें तंग करती रही। इससे पूरे परिवार में डर व भय का माहौल रहा। बड़ा भाई पढ़ाई छोड मुम्बई में प्राइवेट जॉब करने लगा। बहन ने भी आठवीं कर पढ़ाई छोड़ दी। वह घर के कामकाज के साथ-साथ मजदूरी भी करने लगी। पहले पिताजी भी मुम्बई में मिठाई की दुकान पर काम किया करते थे। मां के घर से चले जाने से वे भी मानसिक रूप से परेशान रहने लगे फिर भी पिताजी ने मुझे गांव की स्कूल में आठवीं तक पढाया। मेरे आगे पढ़ने की इच्छा को देखते हुए उन्होंने मुझे पास गांव जो करीब 4 कि.मी था वहॉ प्रवेश दिलाया। स्कूल जाने आने का कोई साधन नहीं था, पैदल ही आना-जाना होता था। परिवार की आर्थिक स्थिति को देखते हुए मैं चाहकर भी स्कूल लगातार नहीं जा सकी। वार्षिक परीक्षा के समय भाई की शादी के कारण परीक्षा में नहीं बैठ पायी। आगे पढ़़ने की इच्छाओं पर विराम-सा लग गया। घर वालों को भी आगे पढ़ाने में कोई रूचि नहीं थी। इच्छाएं खत्म होती दिख रही थी।
इसी दौरान गांव में दूसरा दशक कार्मिक सर्वे करने हमारे घर आए। मैंने घर की वास्तविक स्थितियों के बारें बताया। उन्होनें गांव में लोगों को नुक्कड़ नाटक व कठपुतली से दूसरा दशक की गतिविधियों के बारे में बताया। कुछ समय के बाद संस्था ने मेरी चाची के घर में इखवेलो शुरु किया। मैं भी रोज इखवेलो पर आने लगी, वहॉ पढ़ना-लिखना, कम्प्यूटर सीखना, पेंटिग करना, चार्ट बनाना, खेलना, गीत गाना करती। दीदी व भईया ने मुझे प्रशिक्षणों में भी भाग लेने के कई मौके दिये। इस तरह मैं दूसरा दशक की सक्रिय सहभागी बनी। मेरे सोचने समझने के साथ-साथ मेरा बोलना भी अच्छा हुआ। कम शब्दों में कहें तो मैनें व्यक्तिगत जीवन को अच्छे से जीने के खूब बातें सीखी। करीब से प्रजनन स्वास्थ्य को समझा, वित्तीय साक्षरता को जाना। टेबलेट्स व लेपटॉप पर पेंटिग, गेम, विडियो सर्च करना, फोल्डर में फाइल सेव करना, मूवी मेकर में काम करना फोटो फ्रेम में फोटो सेट कर सेव करना, टाईप करना आदि मजे से सीखा।
इसी दौरान देसूरी में ऑपन बोर्ड परीक्षा तैयारी हेतु शिविर लगा। मैं और मेरी बुआ की लड़की हुलिसा 10 वीं की पढ़ाई हेतु शिविर से जुड़े। मुझे खुशी थी कि भगवान ने सुनी और फिर से पढ़ने का मौका मिला। मैनें शिविर में 10 वीं की तैयारी के साथ-साथ अन्य गतिविधियों में बेहतर प्रदर्शन किया। शिविर में रहकर बहुत कुछ जानने समझने व सीखने का मौका मिला। शिविर के अंत में घूमनें (शैक्षिक भ्रमण) भी गये जो जीवन का सुन्दर व यादगार अनुभव रहा।
जब शिविर समाप्ति पर घर जाने की बारी आई तो मैंने यह कहते हुए मना कर दिया था कि हमें घर पर पढ़ाई करने का बिलकुल भी माहौल नहीं मिलेगा। दीदी ने समझाया इखवेलो पर जाकर नियमित पढ़ाई करना। वहॉ भईया व दीदी आपकी पढाई में मदद करेंगें। मैंने वैसा ही किया घर आने के बाद नियमित इखवेलो पर पढ़ाई जारी रखी। दोनों ने भरपूर सहयोग किया। मुझे पुनः फोलोअप शिविर में जाकर व्यवस्थित तरीके से पढाई करनी थी। शिविर में तैयारी करने का दूसरा अवसर भी मिला। लेकिन दुर्भाग्य से कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन हुआ और शिविर को बीच में ही रोकना पड़ा। इन परिस्थितियों में सब घर में बंद रहकर जिंदगी जीने को मजबूर हुए। लेकिन मैनें अपना हौसला बुलंद रखा और घर में रहकर नियमित अध्ययन कर रही हूँ। मुझे पूर्ण विश्वास है कि मैं एक ही बार में 10 वीं कक्षा पास कर लूंगी। मेरे अन्दर जो हौसला और आत्मविश्वास बना है इसमें सबसे बड़ी अहम भूमिका दूसरा दशक में काम कर रहे सभी लोगों की है। उन्होनें मुझे ‘‘निर्भय मन सिर ऊॅचा’’ निडर व मजबूत से रहना सिखाया। सच कहुं तो दूसरा दशक किशोर-किशोरियों को बेहतर जीवन जीने के तरीके सरल रूप से समझाने का अनूठा काम कर रहा है। मैं दूसरा दशक की सदा आभारी रहूंगी। जिसने मेरी जिन्दगी से गायब सी हो गईं खुशियां पुनः लौटाने में विशेष योगदान किया है।
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